Talimkhana Kshar | Kokilaksha Kshar | Hygrophila auriculata

Talimkhana Kshar | Kokilaksha Kshar | Hygrophila auriculata

USEFULL AND EFFECTIVE GALL BLADDER STONE (GB STONE),  Gallstones

Dosage and Method of Use : 125 mg to 250 mg mix with honey after breakfast and dinner.

Hygrophila auriculata is a herbaceous, medicinal plant in the acanthus family that grows in marshy places and is native to tropical Asia and Africa. In India it is commonly known as kokilaksha or gokulakanta, in Sri Lanka as neeramulli. In Kerala it is called vayalchulli. In Tamil it is called Neermulli.
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USEFULL AND EFFECTIVE GALL BLADDER STONE (GB STONE)

Kokilaksha: कोकिलाक्ष के ज़बरदस्त फायदे


कोकिलाक्ष (Kokilaksha) को तालमखाना कहते हैं। सामान्य तौर पर इसके बीज का प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता है। ये एक तरह का कंटीला पौधा होता है जो नदी, तालाब के किनारे गीली मिट्टी में उगता है। इसके बीजों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा यौन संबंधी समस्याओं के लिए किया जाता है।

प्राचीन काल से तालमखाना (talmakhana) का प्रयोग कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। क्योंकि तालमखाना या कोकिलाक्ष के बीज के औषधीय गुण अनगिनत होते हैं और इसका सही मात्रा में चिकित्सक के सलाह से प्रयोग किया गया तो कई बीमारियों से राहत पाया जा सकता है।

कोकिलाक्ष क्या है ?(What is Kokilaksha in Hindi?)

प्राचीन काल से इसका प्रयोग वाजीकरण चिकित्सा या सेक्स संबंधी समस्याओं के उपचार में किया जा रहा है। आयुर्वेदीय निघण्टु एवं संहिताओं में कोकिलाक्ष का वर्णन प्राप्त मिलता है। चरक-संहिता के शुक्रशोधन महाकषाय में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है।

कोकिलाक्ष मूल रूप से सेक्स संबंधी बीमारियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है, विशेष रूप से पुरूषों के काम शक्ति बढ़ाने और स्पर्म काउन्ट या शुक्राणु की संख्या को बढ़ाने में बहुत असरदार रूप से काम करता है। तालमखाना मीठा, अम्लिय गुण वाला, कड़वा, ठंडे प्रकृति का, पित्त को कम करने वाला, बलकारक, खाने में रुचि बढ़ाने वाला, फिसलने वाला, वात और कफ करने में सहायक होता है। यह सूजन, पाइल्स, प्यास, पित्त संबंधी समस्या, शोफ (Dropsy), विष, दर्द, पाण्डु या पीलिया, पेट संबंधी रोग, पेट का फूलना , मूत्र का रुकना , जलन, आमवात या गठिया, प्रमेह या मधुमेह, आँखों के बीमारियाँ तथा रक्तदोष को कम करने में मदद करता है। इसके बीज कड़वे, मधुर, ठंडे तासीर के, भारी, कमजोरी दूर करने वाले तथा गर्भ को पोषण देने वाले होते हैं।

कोकिलाक्ष के पत्ते मधुर, कड़‍वे तथा शोफ (Dropsy), शूल या दर्द, विष, खाने की कम इच्छा, पेट संबंधी रोग, पाण्डु या पीलिया रोग, विबंध या कब्ज, मूत्ररोग नाशक तथा वात कम करने वाले होते हैं। तालमखाने की जड़ शीतल, दर्दनिवारक या दर्द कम करने वाला, मूत्रल तथा बलकारक होती है।

अन्य भाषाओं में तालमखाना के नाम (Name of Talmakhana in Different Languages)

कोकिलाक्ष या तालमखाना का वानास्पतिक नाम Hygrophila auriculata (Schumach) Heine (हाइग्रोफिला ऑरीकुलाटा)Syn-Hygrophila spinosa T. Anders होता है। इसका कुल Acanthaceae (ऐकेन्थेसी) होता है। और इसको अंग्रेजी में Marsh barbel (मार्श बारबेल) कहते हैं। लेकिन इसके अलावा भी अन्य भाषाओं में दूसरे नामों से भी तालमखाना को पुकारा जाता है।

Talmakhana in –

  • Sankskrit-कोकिलाक्ष, काकेक्षु, इक्षुर, क्षुर, भिक्षु, काण्डेक्षु, इक्षुगन्धा और इक्षुबालिका;
  • Hindi-तालमखाना, कोकिला आँख गोकुलकाँटा, जुलीआकाण्टा, तालमखाना, ऊँटकटरू;
  • Urdu-तालिमखाना (Talimkhana);
  • Kannada-कोलावलिके (Kolavalike), बलिकेल (Balikel);
  • Gujrati -एखरो (Ekharo), आखो (Aakho);
  • Tamil-निरमुल्ली (Nirmulli);
  • Telugu-कोकिलाक्षी (Kokilakshi), कोकिलाक्षमु (Kokilaksamu), नीरुगुब्बी (Neerugubbi);
  • Bengali-कुलियाखारा (Kuliakhara), कण्टकलिका (Kantakalika);
  • Nepali-तालमखाना (Talamkhana);
  • Panjabi-तालमखाना (Talmakhana);
  • Marathi-तालीमखाना (Talimakhana), कोलसुन्दा (Kolsunda);
  • English-लॉन्ग लीव्ड बारलेरिया (Long leaved barleria), तालमखाना (Talmakhana);
  • Arbi-अफकीत (Afqeet)।

 

कोकिलाक्ष या तालमखाना के फायदे (Benefits and Uses of Talmakhana in Hindi)

तालमखाना के अनेक फायदे हैं। आयुर्वेद में कोकिलाक्ष के पौष्टिकता के आधार पर कई तरह के बीमारियों के लिए उपचार स्वरुप औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। चलिये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-

खांसी में फायदेमंद कोकिलाक्ष (Talmakhana Benefits for Cough in Hindi)

अगर मौसम के बदलाव के कारण खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो इसके घरेलू इलाज से आराम मिल सकता है। कोकिलाक्ष के पत्तों का चूर्ण बनाकर, 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से खाँसी में लाभ होता है।

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